Incredible Humility
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Incredible humbleness |
अदभुत विनम्रता
स्वामीरामकृष्णपरमहंसकरुनाऔरदयाकेसागरथे/ श्रीरामकृष्णपरमहंसअपनेजीवनकाल में लोगोंकोअहंकारऔरघमंडकोदूरकरनेऔरनम्रबननेकेअनेकोंउपायबतायाकरतेथे/ कोईभीव्यक्तिजबउनसेमिलनेकोआतातोवहउसकेअभिनन्दनकरनेसेपहलेहीउसकाअभिनन्दनकरतेथे/
वहमाँकालीसेevery day रो–रोकरकरprayer करते थे कि- हेमाँ! मुझसेEgotismकोदूररखना/ मुझमेंनम्रताऔरदीनताभरदो/ मुझेमानऔरसम्मानकुछभीनहींचाहिए/ बस, माँतुममेराअहंकारदूरकरकेमुझेदीनसेभीदीनऔरहीनसेभीहीनबनादोऔरअपनीकृपाछावंमेंरखलो/”
एक दिनश्रीरामकृष्णकृष्णनगरकेकिसीसज्जनकेयहाँगये/ उसीtime वहांउससज्जनसेमिलनेकोदीनबंधुन्यायरत्नभीवहांआगये/ वेन्यायशास्त्रकेबहुतबड़ेविद्वानथे/ श्रीरामकृष्णनेउन्हेंदेखतेहीस्वभावकेअनुसारउन्हेंप्रणामकिया, परन्तुन्यायरत्ननेउन्हेंप्रणामनहींकियाऔरबोले- “ क्याआपमेरेप्रणामकेयोग्यहै?” श्रीरामकृष्णनेउत्तरदिया- “ मैंआपकादासहूँ/ मेरेलिएसभीमाननीयहै/” न्यायवेत्ताबोले– “ मैनेजोपूछाहै, उसकाanswer दीजियेकिक्याआपमेरेप्रणामकेयोग्यहै?” श्रीरामकृष्णनेबड़ेविनम्रभावसेकहा- “ मैंसंसारमेंसबसेनीचहूँ/ मैंसवकोंकाभीसेवकहूँ/ मेरेलिएसभीआदरणीयहै/” न्यायवेत्तानेपुनःकहा–“ आपमेरीबातनहींसमझे, मैंपूछनाचाहताहूँकिआपकेशरीरपेजनेऊहैयानहीं? यदीआपसंन्यासीहै, तोमैंआपकोप्रणामकरूँ/ अर्थात्मैंपूछताहूँकिक्याआपसंन्यासीहै?” परन्तुअहंकारसेदूर श्रीरामकृष्णनेअपनेमुँहसेनहीकहाकिवोएकसंन्यासीहै/ बहुतपूछनेकेबादहीकहाकिहाँमैंएकसंन्यासीहूँ/
दोस्तोंयेसीविनम्रतायदीहमलोगअपनेजीवनमेउतारलेऔरarrogance से खुदकोदूरकरनेकाप्रयासहमसभीकरेतोहमारेऔरहमारेआस-पासकासंसारकितनासुंदरहोजायेगाकहीकोईभेद-भाव, ऊँच-नीच, जलननहींहोगी/ चारोंओरप्रेमऔरसदभावनाकाविकासहोगा/ जीवनमैंउन्नतिऔरशांतिकेरास्तेखुलेंगेक्योंकिविनम्रव्यक्तिकेआगेसंसारझुकताहै/
Note: The motivational story shared here is not my original creation, I have read it before and I am just providing it in Hindi.
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